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November 29, 2011 Shayari 2 Comments

ऐसा एक दोस्त चाहिए…

ना ज़मीन, ना सितारे, ना चाँद, ना रात चाहिए,
दिल मे मेरे, बसने वाला किसी दोस्त का प्यार चाहिए,

ना दुआ, ना खुदा, ना हाथों मे कोई तलवार चाहिए,
मुसीबत मे किसी एक प्यारे साथी का हाथों मे हाथ चाहिए,

कहूँ ना मै कुछ, समझ जाए वो सब कुछ,
दिल मे उस के, अपने लिए ऐसे जज़्बात चाहिए,

उस दोस्त के चोट लगने पर हम भी दो आँसू बहाने का हक़ रखें,
और हमारे उन आँसुओं को पोंछने वाला उसी का रूमाल चाहिए,

मैं तो तैयार हूँ हर तूफान को तैर कर पार करने के लिए,
बस साहिल पर इन्तज़ार करता हुआ एक सच्चा दिलदार चाहिए,

उलझ सी जाती है ज़िन्दगी की किश्ती दुनिया की बीच मँझदार मे,
इस भँवर से पार उतारने के लिए किसी के नाम की पतवार चाहिए,

अकेले कोई भी सफर काटना मुश्किल हो जाता है,
मुझे भी इस लम्बे रास्ते पर एक अदद हमसफर चाहिए,

यूँ तो ‘मित्र’ का तमग़ा अपने नाम के साथ लगा कर घूमता हूँ,
पर कोई, जो कहे सच्चे मन से अपना दोस्त, ऐसा एक दोस्त चाहिए,

November 29, 2011 Shayari 2 Comments

अजनबी दोस्ती…

दर्द में कुछ कमी-सी लगती है
जिन्दगी अजनबी-सी लगती है

एतबारे वफ़ा अरे तौबा
दुश्मनी दोस्ती-सी लगती है

मेरी दीवानगी कोई देखे
धुप भी चांदनी-सी लगती है

सोंचता हूँ की मैं किधर जाऊँ
हर तरफ रौशनी-सी लगती है

आज की जिन्दगी अरे तौबा
मीर की सायरी सी लगती है

शाम-ऐ-हस्ती की लौ बहुत कम है
ये सहर आखरी-सी लगती है

जाने क्या बात हो गयी यारों
हर नजर अजनबी-सी लगती है
दोस्ती अजनबी-सी लगती है…….

November 29, 2011 Shayari 0 Comments

यही जीना है तो फ़िर मरना क्या है?

शहर की इस दौड़ में दौड़ के करना क्या है?
जब यही जीना है दोस्तों तो फ़िर मरना क्या है?

पहली बारिश में ट्रेन लेट होने की फ़िक्र है भूल गये भीगते हुए टहलना क्या है?
सीरियल्स् के किर्दारों का सारा हाल है मालूम पर माँ का हाल पूछ्ने की फ़ुर्सत कहाँ है?

अब रेत पे नंगे पाँव टहलते क्यूं नहीं?
108 हैं चैनल् फ़िर दिल बहलते क्यूं नहीं?

इन्टरनैट से दुनिया के तो टच में हैं,
लेकिन पडोस में कौन रहता है जानते तक नहीं.

मोबाइल, लैन्डलाइन सब की भरमार है,
लेकिन जिग्ररी दोस्त तक पहुँचे ऐसे तार कहाँ हैं?

कब डूबते हुए सुरज को देखा त, याद है?
कब जाना था शाम का गुज़रना क्या है?

तो दोस्तों शहर की इस दौड़ में दौड़् के करना क्या है
जब् यही जीना है तो फ़िर मरना क्या है?

November 29, 2011 Kavita / Poems 16 Comments

आज तुझी खूप आठवण आली…

आज तुझी खूप आठवण आली,
म्हणून मुद्दामच मोबाइल काढला,
तुझा जुना नंबर शोधून,
बंद असून सुद्धा एकदा तपासून पहिला,

नंबर अन अवेलेबल दाखवत होता,
इथे श्वास सारखा फुलत होता,
का माहित नाही कसतरीच झालेलं,
मनात सारखं काहीतरी चाल्लेल,

हो तिथेच गेलेलो मी,
जिथे पहिल्यांदा भेटलो होतो,
नजरेला नजरा देत,
एकत्र राहणार बोललो होतो,

तू मात्र निघून गेलीस,
पण मी माझ दिलेलं वचन पूर्ण करतोय,
मी अजूनहि तुझी तिथेच वाट पाहतोय,
तू गेल्यावरही तू जवळ असल्याचा भास होतोय…

November 29, 2011 Kavita / Poems 1 Comments

कॉलेज गारवा (College Garava)

College kavita study

Syllybus जरा जास्तच आहे
दर वर्षी वाटतो…
Chapters पाहून Passing चा
Problem मनात दाटतो…
तरी lectures चालू राहतात
डोक्यात काही घुसत नहीं….
चित्र-विचित्र figures शिवाय
Board वर काहीच दिसत नाही….
तितक्यात कुठून तरी Function ची
Date जवळ येते…
Semester मधले काही दिवस
नकळत चोरून नेते…
नंतर lecturers Extra घेउन
भरभरा शिकवत राहतात…
Problems Example Theory सांगून
Syllybus लवकर संपवू पाहतात…
पुन्हा हात चालू लागतात…
मन चालत नाही….
सरांशिवाय वर्गामध्ये
कुणीच बोलत नाही…
Lectures संपून Submission चा
सुरु होतो पुन्हा खेळ..
journal Complete करण्यामध्ये
फार फार जातो वेळ…
चक्क डोळ्यांसमोर Syllybus
चुटकी सरशी sampun जातो..
‘EXAM’s मध्ये वाचून सुद्धा
Paper काबर सो…सो..च जातो??